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ग़ज़ल
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
ये क्या हुआ कि मिरे लब पे इल्तिजा भी नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिल की आह-ए-ना-रसा सू-ए-फ़लक जाती है कब
ख़्वाहिशें कितनी भी पूरी हों ललक जाती है कब
सलमान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
असर किया है ये ऐ आह-ए-ना-रसा कैसा
वो मुझ पे रात को उल्टा हुआ ख़फ़ा कैसा
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
'इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक़्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
धड़कन भी मुनहसिर है मिरी तेरी याद पर
चलता नहीं है ज़ोर दिल-ए-ना-मुराद पर