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ग़ज़ल
इज्ज़ से और बढ़ गई बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त
अब वो करे इलाज-ए-दोस्त जिस की समझ में आ सके
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
ज़ख़्म मिलते हैं इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल मिलता नहीं
वज़-ए-क़ातिल रह गई रस्म-ए-मसीहाई गई
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-जफ़ा-ए-दोस्त का कैसे अदा हो शुक्रिया
लज़्ज़त-ए-सोरिश-ए-जिगर देने लगी दुआ कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
अगर ज़बाँ से बयाँ हाल-ए-ग़म न हो पाया
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरी ख़ामुशी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ख़ुदा का दोस्त है तामीर-ए-दिल जो शख़्स करता हो
ख़लीलुल्लाह भी काबा का इक मेमार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता