aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कँवल"
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
हुस्न को चाँद जवानी को कँवल कहते हैंउन की सूरत नज़र आए तो ग़ज़ल कहते हैं
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायदवो अकेले हैं आज-कल शायद
भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चेकँवल के फूल से जैसे भरा तालाब रहता है
किसी का भीगा बदन गुल खिलाता है अक्सरगुलाब रानी कँवल यासमीन चम्पा-कली
जहाँ है मौजज़न रंगीनी-ए-हुस्नवहीं दिल का कँवल लहरा रहा है
कहाँ से ढूँढ के लाऊँ चराग़ सा वो बदनतरस गई हैं निगाहें कँवल कँवल के लिए
ये आज जिस का है उस नाम को मुबारक होमिरी जबीं पे मिरे आँसुओं से कल लिख दे
मिरे जहाँ में ज़मान-ओ-मकान-ओ-लैल-ओ-नहारतिरे जहाँ में अज़ल है अबद न आज न कल
अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जाचमन के फूल दिलों के कँवल खिलाता जा
ज़िंदगी इक साज़ है लेकिन 'कँवल'बे-सदा होने से पहले सोच ले
'रसा' इस आबना-ए-रोज़-ओ-शब मेंदमकते हैं कँवल फ़ानूस-ए-जाँ से
रूप सुनहरा आँख कँवल है क्या लिक्खूँउस की इक-इक बात ग़ज़ल है क्या लिक्खूँ
क़ुदरत के उसूलों में बदल क्यूँ नहीं होताजो आज हुआ है वही कल क्यूँ नहीं होता
रुख़ आफ़्ताब होंट कँवल चाल हश्र-ख़ेज़किस शय की अब कमी है तुम्हारे शबाब में
पहले खिल जाए दिल का कँवल फिर लिखेंगे ग़ज़लकोई दम ऐ सरीर-ए-क़लम सब्र कर सब्र कर
लोग कहते हैं जिसे नील कँवल वो तो 'क़तील'शब को इन झील सी आँखों में खुला करता है
ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए आँख कँवल हो जाएशायद उन को पल भर सोचें और ग़ज़ल हो जाए
इंतिज़ार आश्ना आँखों की जलनतेरी आँखों के कँवल चाहती है
साथ रहने से भी खिल जाते हैं रिश्तों के कँवलबंदिशें रोने लगीं मुझ को रिहाई देते
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