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ग़ज़ल
फ़सील-ए-शहर-ए-अना में शिगाफ़ मैं ने किया
ये कार-नामा ख़ुद अपने ख़िलाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इस बाग़ में है बाद-ए-ख़िज़ाँ ओ बाद-ए-क़हत
हर गुल के दिल में है ख़लिश-ए-ख़ार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हरा-भरा नज़र आता है यूँ तो वो 'अख़्तर'
दयार-ए-दिल में मगर क़हत-ए-रंग-ओ-बू है बहुत
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
कश्कोल-ए-चश्म ले के फिरो तुम न दर-ब-दर
'मंज़ूर' क़हत-ए-जिंस-ए-वफ़ा का ये साल है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
प्यासी ज़मीन-ए-दिल है पड़ा क़हत-ए-फ़स्ल-ए-शौक़
हाँ ऐ हवा किधर गए दिन बर्शगाल के