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ग़ज़ल
दिल-ए-दीवाना से हाल-ए-दिल-ए-दीवाना कहते हैं
हमीं हैं सुनने वाले और हमीं अफ़्साना कहते हैं
हबीबुर्रहमान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
यूँ दिल-ए-दीवाना को अक्सर सज़ा देता हूँ मैं
अपनी बर्बादी पे ख़ुद ही मुस्कुरा देता हूँ मैं
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वो जिस की दास्ताँ फैली दिल-ए-दीवाना मेरा था
ज़बानें दुश्मनों की थीं मगर अफ़्साना मेरा था
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
क्या करें तदबीर-ए-वहशत ऐ दिल-ए-दीवाना हम
उस से मिल भी तो नहीं सकते हैं आज़ादाना हम
जामी रुदौलवी
ग़ज़ल
दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा
मगर वो पूछ बैठे ख़ुद ही हाल-ए-दिल तो क्या होगा
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
जुनूँ ही से मगर बिल्कुल दिल-ए-दीवाना ख़ाली है
न मानूँगा असर से ना'रा-ए-मस्ताना ख़ाली है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
बे-रुख़ है वो परी दिल-ए-दीवाना क्या करे
रो रो के आँख भरती है पैमाना क्या करे
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
दिल-ए-दीवाना कि भूले ही से घर रहता है
ज़िक्र क्यूँ उस का मगर शाम-ओ-सहर रहता है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
रहीन-ए-बीम-ए-हस्ती है दिल-ए-दीवाना बरसों से
हवा की ज़द में है अपना चराग़-ए-ख़ाना बरसों से