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ग़ज़ल
हज़ारों हसरतें बेताब थीं बाहर निकलने को
वो सोते में भी 'परवीं' फ़ित्ना-ए-बेदार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी
ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
क़यामत आएगी या आ गई इस की शिकायत क्या
क़यामत क्यूँ न हो जब फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा तुम हो