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ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह ठंडी साँस भरती है मज़ारों पर
उदासी मुँह-अँधेरे देखिए गोर-ए-ग़रीबाँ की
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दिल अजब गुम्बद कि जिस में इक कबूतर भी नहीं
इतना वीराँ तो मज़ारों का मुक़द्दर भी नहीं
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
अस्र-ए-हाज़िर को सुनाता हूँ इस अंदाज़ में शे'र
मौसम-ए-गुल हो मज़ारों पे गुल-अफ़शाँ जैसे