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ग़ज़ल
ये शहर-ए-दिल है यहाँ सुब्ह शाम कुछ भी नहीं
तुम्हारी याद से बढ़ कर है काम कुछ भी नहीं
अम्बर आबिद
ग़ज़ल
शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा
जब वो शहर-आरा गया फिर शहर-ए-दिल में क्या रहा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
शहर-ए-दिल उजड़ा तो बरबाद हुआ क्या क्या कुछ
नक़्श-बर-आब की मानिंद मिटा क्या क्या कुछ
महमूदुल हसन
ग़ज़ल
शहर-ए-दिल ऐसा कि हैराँ थी तिलिस्मात की गर्द
जम गई जिस के दर-ओ-बाम पे ख़दशात की गर्द
इम्तियाज़ अंजुम
ग़ज़ल
कोई आरज़ू बन कर शहर-ए-दिल में आया है
हर नफ़स में पिन्हाँ है हर नज़र पे छाया है
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
ग़ज़ल
नदीम मलिक
ग़ज़ल
जब शहर-ए-दिल में पड़ गए उस ज़र-बदन के पाँव
पड़ते नहीं ज़मीन पे अब इस चमन के पाँव