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ग़ज़ल
शहर-ए-ना-पुरसाँ में कुछ अपना पता मिलता नहीं
बाम-ओ-दर रौशन हैं लेकिन रास्ता मिलता नहीं
हसन आबिदी
ग़ज़ल
मैं जब पहले-पहल इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में आया था
सभी अपने नज़र आते थे लेकिन कौन अपना था
रहमान ख़ावर
ग़ज़ल
'इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक़्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
धड़कन भी मुनहसिर है मिरी तेरी याद पर
चलता नहीं है ज़ोर दिल-ए-ना-मुराद पर