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ग़ज़ल
शिकायत-ए-सितम-ए-रोज़गार करता हूँ
ख़िज़ाँ के दौर में ज़िक्र-ए-बहार करता हूँ
सय्यद अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
सितम तो ये है कि हम ख़ुद सितम के ख़ूगर हैं
शिकायत-ए-सितम-रोज़गार क्या कहिए
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
शिकायत-ए-सितम-ए-दुश्मनाँ मैं क्या करता
कि भूलता ही नहीं लुत्फ़-ए-दोस्ताँ मुझ को
अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल
वाइ'ज़ शराब-ओ-हूर की उल्फ़त में ग़र्क़ है
है सर से पाँव तक ये सितम-गर तमाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क्या सबब क्या वज्ह क्यूँ आ कर निकल जाए शिकार
क्यूँ निशाना पर न जाएगा हमारा तीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क्या वज्ह तेरे ज़ुल्म-ओ-सितम में मज़ा नहीं
ऐ दौर-ए-चर्ख़ आज वो शायद नहीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जाने क्यों तीर-ए-सितम चलते हैं हम पर 'बेबाक'
अपना मस्लक तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मिरे सफ़ीने को साहिल की जुस्तुजू ही नहीं
सितम ये है किसी तूफ़ाँ का इंतिज़ार भी है