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ग़ज़ल
देख कर शौक़-ए-शहादत बर-सर-ए-मक़्तल मिरा
क़ातिलों ने हाथ से घबरा के ख़ंजर रख दिए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
किया बेताब ऐसा लज़्ज़त-ए-शौक़-ए-शहादत ने
रग-ए-जाँ में भरे नश्तर कलेजे में सिनाँ रख दी
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
जैमिनी सरशार
ग़ज़ल
ख़ुश्बू-ए-शौक़-ए-शहादत से मोअ'त्तर हो कर
गुलशन-ए-महज़र-ए-मीक़ात पे आया हुआ मैं
सय्यद मोहम्मद बाक़र
ग़ज़ल
इस क़दर शौक़-ए-शहादत ने मुझे दौड़ाया
थक गए पाँव मिरे बाज़ू-ए-क़ातिल की तरह