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ग़ज़ल
अब वो फिरते हैं इसी शहर में तन्हा लिए दिल को
इक ज़माने में मिज़ाज उन का सर-ए-अर्श-ए-बरीं था
हबीब जालिब
ग़ज़ल
सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
कमाल-ए-औज पर है हुस्न-ए-आलमगीर-ए-मय-ख़ाना
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं
हम वो पैकर हैं सर-ए-अर्श-ए-बरीं नाचते हैं
अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़रा सुन तो कि अब मज़लूम ना-उम्मीद हो कर
ये कहते हैं सर-ए-अर्श-ए-बरीं कोई नहीं है
अहसन अली ख़ाँ
ग़ज़ल
जो दूर निगाहों से सर-ए-अर्श-ए-बरीं है
वो नूर सर-ए-गुम्बद-ए-ख़िज़रा नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ज़मीन मय-कदा-ए-अर्श-ए-बरीं मा'लूम होती है
ये ख़िश्त-ए-ख़ुम फ़रिश्ते की जबीं मा'लूम होती है
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कौन उस वादी से उछला ता-सर-ए-अर्श-ए-बरीं
गुम हैं जिस वादी में 'अख़्तर' ख़िज़्र भी इल्यास भी
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
ज़हे क़िस्मत जगह पाई जो मैं ने तेरी महफ़िल में
ठिकाना ख़ाक ने गो कि सर-ए-अर्श-ए-बरीं पाया