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ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म्ज़ा-ओ-ख़ैल-ए-करिश्मा लश्कर-ए-नाज़
अजब सिपाह से ठहरा मुक़ाबला दिल का
ममनून निज़ामुद्दीन
ग़ज़ल
हैं खेल सब मुनाफ़ी-ए-शौकत कि अहल-ए-जाह
रह जाते हैं शिकार में ख़ैल-ओ-हशम से दूर
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला
शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुर्फ़ा फ़ुसूँ-सरिश्त है चश्म-ए-करिश्मा-संज-ए-यार
लेती है इक निगाह में सब्र भी और क़रार भी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मसीहुल्लाह ख़ाँ अता
ग़ज़ल
चश्म-ए-करिश्मा साज़ की ये भी है इक ख़ुसूसियत
चाहा जिसे बना दिया चाहा जिसे मिटा दिया
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का ये भी कमाल देख
पत्थर को छू के हाथ से लाला बना दिया
मोहम्मद इस्माईल शादाँ
ग़ज़ल
मुंतज़िर है इक जहाँ हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का
अब उठा भी दीजिए पर्दा हरीम-ए-नाज़ का