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ग़ज़ल
मिरी सरिश्त-ए-'सुख़न' में हैं कुछ नए उस्लूब
नई ग़ज़ल ने मुझे भी ख़ुश-आमदीद कहा
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
ख़ुश-आमदीद का मंज़र ग़ुरूब-ए-शाम में था
दर-ए-शफ़क़ पे फ़रिश्ते से मुस्कुराने लगे
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
उस ने ख़ुश-आमदीद अगर तुम को नहीं कहा तो क्या
सैकड़ों मिन्नतों के बा'द दर तो खुला मिरे 'अज़ीज़