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ग़ज़ल
जाने किस रुत में खिलेंगे यहाँ ताबीर के फूल
सोचता रहता हूँ अब ख़्वाब उगाता हुआ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
बैठ के साहिल पर हम दोनों सपने बोया करते थे
रेत के सीने पर इक बच्चा महल उगाया करता था
सय्यद नसीर शाह
ग़ज़ल
'ख़लील' अब मेरी आँखों में सुनहरे ख़्वाब मत बोना
मैं पहले ही दुखों की खेतियाँ तन्हा उगाता हूँ
ख़लील अहमद
ग़ज़ल
उगाया जिस ने है बंजर ज़मीं में तुझ को 'नसीम'
है क्या बईद कि वो फूल भी खिला देगा