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ग़ज़ल
ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई
मैं पयम्बर तो नहीं हूँ कि बचा ले मुझे कोई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
दिल अपना हरीफ़-ए-सैल-ए-बला अब क्या कहें कितना टूट गया
आज और थपेड़े टकराए आज और किनारा टूट गया
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
मसील-ए-सैल-ए-रवाँ दश्त-ओ-जू में गुज़री है
हयात हिज्र के तौक़-ए-गुलू में गुज़री है
शगुफ़्ता नईम हाश्मी
ग़ज़ल
हवस मस्ती की 'साइल' को नहीं काफ़ी है थोड़ी सी
प्याले में अगर पस-ख़ुर्दा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
समो न तारों में मुझ को कि हूँ वो सैल-ए-नवा
जो ज़िंदगी के लब-ए-मो'तबर से निकलेगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कोई भी क़ैद-ए-मुसलसल मिरी क़िस्मत में न थी
मेरे सय्याद का दिल टूट गया है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
अजब शय है 'फ़ज़ा' ज़ेहन ओ नज़र की ये असीरी भी
मुसलसल देखते रहना बराबर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
इक इम्तिहान-ए-वफ़ा है ये उम्र भर का अज़ाब
खड़ा न रहता अगर ज़लज़लों में क्या करता