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ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-आगही है मुद्द'आ संजीदा संजीदा
ख़ुदी ने वा किए हैं राज़ क्या पेचीदा पेचीदा
सय्यद जमील मदनी
ग़ज़ल
फ़ज़ा ऐसी ब-फ़ैज़-ए-बाग़बाँ मालूम होती है
बहार-ए-गुल्सिताँ मिस्ल-ए-ख़िज़ाँ मालूम होती है
सआदत आबिदी
ग़ज़ल
अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं
इक जहान-ए-शौक़-ए-ना-मोहकम बना सकता हूँ मैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ हर जा सैंकड़ों दीवाने मिलते हैं
जहाँ भी शम्अ' रौशन हो वहीं परवाने मिलते हैं
खुर्शीद खावर अमरोहवी
ग़ज़ल
मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया
ज़ीस्त को अंदाज़ा-ए-ग़म-हा-ए-दौराँ हो गया
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ हम ने जब ख़िरद का रास्ता बदला
मज़ाक़-ए-ज़िंदगी के साथ दिल का मुद्दआ' बदला
कलीम सरौंजी
ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-‘इश्क़ अब ये ‘आलम-ए-दिल होता जाता है
जहान-ए-आरज़ू इक हर्फ़-ए-बातिल होता जाता है
अबरार नग़मी
ग़ज़ल
जिन्हें अपना कभी कहते थे हम उन को ही बेगाना
ब-फ़ैज़-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन कहना ही पड़ता है
हसन जाफ़री
ग़ज़ल
ब-फ़ैज़-ए-रस्म-ए-मय-ख़ाना बदलते ही रहे साक़ी
जो बिन माँगे पिलाए साक़ी-ए-गुलफ़ाम है 'सूफ़ी'
सग़ीर अहमद सूफ़ी
ग़ज़ल
तमाम उम्र ब-फ़ैज़-ए-निगाह-ए-लाला-रुख़ाँ
सनद रहा हूँ इशारात-ए-चश्म-ओ-लब के लिए