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ग़ज़ल
ना-बलद हूँ अज़-तग़ज़्ज़ुल-दर-ग़ज़ल-बा-ईं-हमा
'मीर' के आगे नहीं लगता मैं हकलाता हुआ
ज़हूर मिन्हास
ग़ज़ल
माक़ूल सही वज्द का हीला मगर ऐ शैख़
अच्छा नहीं बा-ईं-हमा-तमकीन-ओ-हया रक़्स
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
गरचे है किस किस बुराई से वले बाईं-हमा
ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है कि उस महफ़िल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शिकस्ता नाव शब तारीक साहिल दूर तूफ़ाँ तेज़
मगर बा-ईं-हमा मौज-ए-रवाँ से कौन गुज़रा है
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
बशर को देखिए बा-ईं-हमा साहिल पे मरता है
हुबाब अपना असासा सैल-ए-बे-पर्वा में रखते हैं
ज़हीर काश्मीरी
ग़ज़ल
तू उरूस-ए-शाम-ए-ख़याल भी तो जमाल-ए-रू-ए-सहर भी है
ये ज़रूर है कि ब-ईं हमा मिरा एहतिमाम-ए-नज़र भी है