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ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
मिरी क़सम है तुम्हें रहरवान-ए-मुल्क-ए-अदम
ख़ुदा के वास्ते तुम भूलना न जा के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
एक आलम ने किया है सफ़र-ए-मुल्क-ए-अदम
हम भी जावेंगे अगर सू-ए-अदम क्या होगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क्या बनाऊँ मैं किसी को रहबर-ए-मुल्क-ए-अदम
ऐ ख़िज़्र ये सर-ज़मीं है जानी-पहचानी मिरी
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
यारान-ए-रफ़्तगाँ से बहुत जी को उन्स है
मिलते अगर मुसाफ़िर-ए-मुल्क-ए-अदम नहीं
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
याद-ए-गुज़िश्तगाँ पर क्या रोएँ अब 'तरक़्क़ी'
क्या हम रवाना सू-ए-मुल्क-ए-अदम न होंगे