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ग़ज़ल
उम्र हँस-खेल के इस तरह गुज़ारी ऐ 'हिज्र'
दोस्त का दोस्त रहा यार का मैं यार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
बख़्त बरगश्ता वो नाराज़ ज़माना दुश्मन
कोई मेरा है न ऐ 'हिज्र' किसी का मैं हूँ
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
नहीं है सहल इस क़दर कि जी सके हर एक शख़्स
बला-ए-हिज्र की रुतों से मौसम-ए-विसाल तक
अज़ीम हैदर सय्यद
ग़ज़ल
पर-फ़िशाँ अश'आर हैं या है फ़रिश्तों का नुज़ूल
या 'अदम ने इक बला-ए-नागहानी छोड़ दी
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
न ख़ुशबू पैरहन की है न ज़ुल्फ़ों की न बातों की
हमें ये जल्वा-ए-बाला-ए-बाम अच्छा नहीं लगता