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ग़ज़ल
सच अच्छा पर उस के जिलौ में ज़हर का है इक प्याला भी
पागल हो क्यूँ नाहक़ को सुक़रात बनो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है मिरा नाम-ए-अर्जुमंद तेरा हिसार-ए-सर-बुलंद
बानो-ए-शहर-ए-जिस्म-ओ-जाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
आईना-ख़ाना बना के जिस ने तोड़ा था मुझे
मेरी किरचों में उसी की ज़ात बाक़ी रह गई
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
उठा है शोर ख़ुद अपने ही अंदर से मगर अक्सर
दहल के बंद कर लेना पड़ी हैं खिड़कियाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
जीना कोई खेल नहीं है बैठो तुक की बात करें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
बनो क्यूँ चारागर तुम क्या करोगे चारागर हो कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
हम भी दुआ करते हैं कि तुम मुख़्तार-ए-सरीर-ए-कोह बनो
लेकिन तुम से मिलना क्या है पत्थर ही बरसाओगे
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
वो इक थका हुआ राही मैं एक बंद सराए
पहुँच भी जाएगा मुझ तक तो मुझ से क्या लेगा