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ग़ज़ल
लबों पर बर्फ़ जम जाए तो इस्तिफ़्सार क्या मा'नी
कि शोर-ओ-ग़ुल फ़क़त तम्हीद है शोला-बयानी की
निज़ामुद्दीन निज़ाम
ग़ज़ल
दरिया-ए-फ़िक्र-ए-नौ की रवानी में गिर गया
सूरज फिसल के बर्फ़ के पानी में गिर गया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
कौन था जो गूँगे लफ़्ज़ों को मआ'नी दे गया
बर्फ़ की झीलों को अंदाज़-ए-रवानी दे गया
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
'इश्क़ में हारा हुआ हूँ कामरानी कुछ नहीं
मेरे हिस्सा में सनम की मेहरबानी कुछ नहीं
सारिक ख़ान सारिक
ग़ज़ल
'बानी' अजब तरह से खुली ख़ुश-मुक़द्दरी
बर्ग-ए-शफ़क़ भी बर्ग-ए-हिना भी मिरे लिए