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ग़ज़ल
निगार-ख़ाना-ए-बज़्म-ए-जहाँ की बात करो
शराब-ओ-सब्ज़ा-ओ-आब-ए-रवाँ की बात करो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-जहान-ए-शौक़ का मेहवर भी मैं ही था
औराक़-ए-दिल पे हर्फ़-ए-मुकर्रर भी मैं ही था
सहरताब रूमानी
ग़ज़ल
मैं 'बज़्म' सोज़-ए-तग़ाफ़ुल से जल बुझा लेकिन
उसे न ज़हमत-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दी मैं ने
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
मोहब्बत ज़िंदगी है 'बज़्म' लेकिन लोग कहते हैं
कि जाम-ए-ज़हर को समझा है जाम-ए-अंगबीं मैं ने
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
गुरेज़ 'बज़्म' ज़रूरी है इल्तिफ़ात में भी
हो रस्म-ओ-राह तो हद से कभी बढ़ूँ भी नहीं
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
वो 'उम्र 'बज़्म' कि जिस का सुराग़ ही न मिला
उस उम्र-ए-रफ़्ता की इक यादगार दिल ही तो है
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
वो 'बज़्म' जो दिल-ओ-जाँ से 'अज़ीज़ था हम को
उसी 'अज़ीज़ ने दी हैं अज़िय्यतें क्या क्या
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
कोई 'बज़्म' ये न पूछे ये मु'आमला है दिल का
कि जहाँ क़दम वो रख दे वो ज़मीं भी आसमाँ है
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
वो इस सूरत से बा'द-ए-मर्ग भी मुझ को जलाती हैं
दिखा दी शम्अ को तस्वीर हाथ आई जहाँ मेरी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
ज़ुल्म कैसा ही पस-ए-मर्ग वो करते लेकिन
लाश होती मिरी और कूचा-ए-जानाँ होता