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ग़ज़ल
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
मगर हम मुसिर थे कि हम ने किताबें बहुत पढ़ रखी हैं
बड़ों ने कहा भी कि देखो मियाँ तजरबा तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
माँ के क़दमों में भी जन्नत नहीं मिलने वाली
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
'फ़िराक़' राह-ए-वफ़ा में सुबुक-रवी तेरी
बड़े-बड़ों के क़दम डगमगाए हैं क्या क्या