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ग़ज़ल
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
जिसे तेरी आरज़ू नहीं तू उसे मिला तो बुरा लगेगा
ज़ुबैर अली ताबिश
ग़ज़ल
'सीमाब' बे-तड़प सी तड़प हिज्र-ए-यार में
क्या बिजलियाँ भरी हैं दिल-ए-बे-क़रार में