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ग़ज़ल
कितना भीड़-भड़क्का जग में कितना शोर-शराबा लेकिन
बस्ती बस्ती कूचा कूचा चप्पा चप्पा तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई