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ग़ज़ल
सवार-ए-तौसन-ए-मअ'नी हूँ चौगान-ए-तबीअत सीं
लिया हूँ गू-ए-मैदान-ए-सुख़न में हम रदीफ़ों सीं
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़्वाह लाठियों सीं मारो ख़्वाह ख़ाक में लथाड़ो
'आशिक़ का दिल पियारे चौगान का बटा है
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
बे-ख़तर ठोक के ख़म जंग के सामान में आ
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
काम हुए हैं सारे ज़ाएअ' हर साअ'त की समाजत से
इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर जूँही
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं