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ग़ज़ल
है निस्फ़-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चाँदनी रातों का क़िस्सा छिड़ गया होगा
जौन एलिया
ग़ज़ल
दिल आशिक़ों के छिद गए तिरछी निगाह से
मिज़्गाँ की नोक-ए-दुश्मन-ए-जानी जिगर हुई
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद
क्या ख़बर थी वो भी हर्फ़-ए-मुख़्तसर हो जाएँगे
सलीम अहमद
ग़ज़ल
ज़िक्र फिर गुज़रे ज़मानों का वहाँ छिड़ जाएगा
वक़्त के चेहरे से फिर पर्दे उठाए जाएँगे
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
दास्तान-ए-ज़िंदगी भी किस क़दर दिलचस्प है
जो अज़ल से छिड़ गया है उस फ़साने की कहो