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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-वहशत तिरे क़ुर्बान तिरा क्या कहना
खिंच के रग रग में मिरे नश्तर-ए-फ़स्साद आया
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ
नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद याँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कभी तो ये फ़साद-ए-ज़ेहन की दीवार टूटेगी
अरे आख़िर ये फ़र्क़-ए-ख़्वाजगी-ओ-बंदगी कब तक
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
ये मुबाहिसे ये मुनाज़रे ये फ़साद-ए-ख़ल्क़ ये इंतिशार
जिसे दीन कहते हैं दीन-दार मिरी रूह पर वही घाव था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
गुज़रा जहाँ से मैं तो कहा सुन के यार ने
क़िस्सा गया फ़साद गया दर्द-ए-सर गया