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ग़ज़ल
वो न जागे रात को और ज़िद से बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता की
बज गया आख़िर गजर ज़ंजीर खड़काते हुए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
यूँ गजर सुब्ह का जल्दी से बजे वस्ल की रात
अरे बे-रहम अरे दिल के सताने वाले
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
किश्त-ओ-ख़ूँ में कट रहे हैं इस तरह लोगों के सर
आदमी है आज-कल मूली का या गाजर का नाम