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ग़ज़ल
ख़ुद अपने-आप को ही घेर कर बैठा है तू कब से
अब अपने-आप से ख़ुद को रिहाई क्यूँ नहीं देता
मनीश शुक्ला
ग़ज़ल
मौलवी साहिब न छोड़ेंगे ख़ुदा गो बख़्श दे
घेर ही लेंगे पुलिस वाले सज़ा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मुझे चारों तरफ़ से मंज़िलों ने घेर रक्खा था
यहाँ से भी निकलने का मगर रस्ता निकल आया