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ग़ज़ल
यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
गर ख़ुदा देवे क़नाअत माह-ए-दो-हफ़्ता की तरह
दौड़े सारी को कभी आधी न इंसाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
जब भी देखो नहाना धोना उन का रहता है चालू
संडे मंडे जुमा हफ़्ता ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ग़ज़ल
देख तुझ ग़म में गिरफ़्तार हूँ इतना 'शाहिद'
मैं शब-ए-हफ़्ता के सब ऐश-ओ-तरब भूल गया
मोहम्मद शाहिद फ़ीरोज़
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-मह-ए-दो-हफ़्ता वही सरफ़राज़ था
जिस की जबीन-ए-शौक़ पे दाग़-ए-नियाज़ था
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
उस ने बिताई साथ में हैं छुट्टियाँ अभी
दो-चार दिन ही बीते हैं हफ़्ता नहीं हुआ