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ग़ज़ल
तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हम ने हारी है सितारो तुम तो सो जाओ
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
आँखों देखी क्या बतलाएँ हाल अजब कुछ देखा है
दुख की खेती कितनी हरी और सुख का जैसे काल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
जो प्यार हम ने किया था वो कारोबार न था
न तुम ने जीती ये बाज़ी न मैं ने हारी थी