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ग़ज़ल
हमारे सपने कुछ इस तरह से जगाए रक्खेंगे रात सारी
कि दिन चढ़े तक तो मेरी बाहोँ में कसमसाई पड़ी रहेगी
आमिर अमीर
ग़ज़ल
क्यूँकर हम इम्तिहान दें सोएँगे जा के बाग़ में
पढ़ने को आधी रात तक कोई हमें जगाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
करूँ इक नाले से मैं हश्र में बरपा सौ हश्र
शोर-ए-महशर मुझे सोते से जगाए तो सही
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल और बढ़ा उस ग़ज़ाल-ए-रअना का
फ़ुसून-ए-ग़म ने भी जादू जगाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तिरे दीवाने हर रंग रहे तिरे ध्यान की जोत जगाए हुए
कभी निथरे सुथरे कपड़ों में कभी अंग भभूत रमाए हुए
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
दिल कहता है वो कुछ भी हो उस की याद जगाए रख
अक़्ल ये कहती है कि तवहहुम पर जीना नादानी है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से जादू नए जगाए जा
जब भी जहाँ पड़ें क़दम फूल वहीं खिलाए जा