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ग़ज़ल
दस्त-ए-जुनूँ में दामन-ए-गुल को लाने की तदबीर करें
नर्म हवा के झोंको आओ मौसम को ज़ंजीर करें
क़मर जमील
ग़ज़ल
ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मैं कि सहरा-ए-मोहब्बत का मुसाफ़िर था 'फ़राज़'
एक झोंका था कि ख़ुश्बू के सफ़र पर निकला
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ