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ग़ज़ल
मोहब्बत मुस्तक़िल कैफ़-आफ़रीं मालूम होती है
ख़लिश दिल में जहाँ पर थी वहीं मालूम होती है
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मोहब्बत रफ़्ता रफ़्ता जान की दुश्मन न हो जाए
अभी तक तो बहुत कैफ़-आफ़रीं मालूम होती है
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
शराबी है वही रग रग में जिस की क़ुदरती मय हो
न हो कैफ़-आफ़रीं जो दिल वो मय-आशाम क्या होगा
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
बहार-ए-कैफ़-आगीं मख़्ज़न-ए-आलाम होती है
क़फ़स की सुब्ह से बेहतर चमन की शाम होती है
शाइर फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
आफ़रीं लज़्ज़त-ए-नज़्ज़ारा ख़ुशा आलिम-ए-कैफ़
दिल का आना था कि फिर होश में आया न गया
सय्यद बशीर हुसैन बशीर
ग़ज़ल
मोहब्बत हो तो तन्हाई में भी इक कैफ़ होता है
तमन्नाओं की नग़्मा-आफ़रीं महफ़िल है तन्हाई