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ग़ज़ल
न क्यों अपनी मोहब्बत को ही बे-लफ़्ज़-ओ-बयाँ कर लें
ख़मोशी को ज़बाँ कर लें नज़र को दास्ताँ कर लें
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
मिसाल-ए-मअ'नी-ए-बे-लफ़्ज़-ओ-लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी
जो तेरे दिल में नहीं है वो 'आरज़ू' हूँ मैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
'फ़ज़ा' तुझी को ये सफ़्फ़ाकी-ए-हुनर भी मिली
इक एक लफ़्ज़ को यूँ बे-लिबास कर जाना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मैं किसी नुक़्ता-ए-बे-लफ़्ज़ का इज़हार नहीं
हाँ कभी हर्फ़-ए-अना वक़्त का इरफ़ान था मैं
साहिल अहमद
ग़ज़ल
काश बे-रब्त ख़यालों को भी दे पाऊँ ज़बाँ
रिश्ता-ए-लफ़्ज़ कहीं टूट गया है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
इख़्तिताम-ए-बे-सुकूँ थी इब्तिदा-ए-आशिक़ी
ज़िंदगी को लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी बनाना याद है