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ग़ज़ल
गर यही फ़स्ल-ए-जुनूँ-ज़ा है यही अब्र-ए-बहार
अज़्मत-ए-तौबा निसार-ए-मय-कशी हो जाएगी
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
पुर-समर शाख़ को है सर का झुकाना अच्छा
छोड़ दे अपने से ये मा-ओ-मनी ख़ूब नहीं
चंदू लाल बहादुर शादान
ग़ज़ल
अदा दिल से करेंगे शुक्र सब अहल-ए-वतन यारब
मय-ए-इशरत से जो उन का लिया लब तो सुबू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
अहबाब हैं मय-ख़ाना है पहलू में है मा'शूक़
अब हज़रत-ए-'शंकर' को तमन्ना से ग़रज़ क्या
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
सुर्ख़ डोरे आ गए पीते ही साक़ी आँख में
ये मय-ए-गुल-रंग थी या ख़ून पैमाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
पैदा किया है क़ल्ब ने सीमाब का ख़वास
हासिल न क्यों हो माही-ए-बे-आब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
आँखें हैं तिरी साक़ी साग़र मय-ए-इरफ़ाँ के
होंटों से लगाने के क़ाबिल हैं तिरी आँखें
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
उतरेगा जब ख़ुमार वही होंगे रंज-ओ-ग़म
दिल को सुकूँ मिलेगा मय-ए-अर्ग़वाँ से क्या
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ये शेर-ओ-फ़न ये मय-ओ-नग़्मा ये शबाब-ओ-रबाब
ये बख़्शिशें हैं ग़म-ए-ज़िंदगी भुलाने को