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ग़ज़ल
मुझ को पड़ा मिला है वो मझधार में तो फिर
पानी पे है ये किस ने लिखा कुछ हुआ तो है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
डूब के उभरे हैं हम दुनिया के हर मझधार से
अब रहा बाक़ी फ़क़त नक़्द-ओ-नज़र में डूबना