आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mansab-e-harf"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mansab-e-harf"
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हिसार-ए-हर्फ़-ओ--हुनर तोड़ कर निकल जाऊँ
कहाँ पहुँच के ख़याल अपनी वुसअ'तों का हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ
किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हर्फ़-ओ-अल्फ़ाज़-ओ-म’आनी के हिजाबों में न थी
बात चेहरों पर जो लिक्खी थी किताबों में न थी
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
वो हर्फ़-ए-आरज़ू जिस पर मुकम्मल ज़ब्त है अब तक
कहीं ऐसा न हो शर्मिंदा-ए-इज़हार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
कब खुला उक़्दा 'रज़ा' जब कर चुके इज़हार-ए-शौक़
मुद्दआ' जाएज़ था हर्फ़-ए-मुद्दआ' मा'यूब था
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
वतन की ख़ाक को भी मंसब-ए-'ऐन-उल-यक़ीं बख़्शा
ज़मीं की पस्तियों में भी फ़राज़-ए-आसमाँ निकले
अबरार नग़मी
ग़ज़ल
मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
करम है उन का न रीझा मैं फिर भी दुनिया पर
था इस में मंसब-ओ-माल-ओ-मनाल क्या क्या कुछ