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ग़ज़ल
हूँ मुंतज़िर-ए-क़ाफ़िला-ए-मिस्र-ए-तमन्ना
यूसुफ़ हूँ अभी चाह-ए-बयाबाँ में पड़ा हूँ
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
है लुत्फ़-ए-दोस्त हर्फ़-ए-तक़ाज़ा का मुंतज़िर
ऐ बेबसी मजाल-ए-तमन्ना कहाँ से लाएँ
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
निगाहें मुंतज़िर हैं एक ख़ुर्शीद-ए-तमन्ना की
अभी तक जितने मेहर-ओ-माह आए ना-तमाम आए
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
जिस की ब-ख़ुदा उस बुत-ए-काफ़िर पे नज़र है
छाती है पहाड़ उस की तो पत्थर का जिगर है
मुंतज़िर लखनवी
ग़ज़ल
दैर ओ मस्जिद में तमन्ना-ए-ज़ियारत किस की
तुम को ऐ काफ़िर ओ दीं-दार लिए फिरती है
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
हाथ फैलाए थे तुम ने मुझ को तन्हा देख कर
अब ख़फ़ा होते हो क्यूँ ज़ख़्म-ए-तमन्ना देख कर
नसीम शामाइल पूरी
ग़ज़ल
इस अपनी किरन को आती हुई सुब्हों के हवाले करना है
काँटों से उलझ कर जीना है फूलों से लिपट कर मरना है