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ग़ज़ल
ये रहे हैं पेड़ पक्षी ये रही आदम की ज़ात
और ज़रा अब साथ में चल सब मिरे क़ाबू में है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
हज़ारों पर्चियाँ यादों की हैं दिल की तिजोरी में
मगर कंजूस मन ने एक भी पर्ची नहीं खोली