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ग़ज़ल
मेहनत की जब ख़ुशबू टपके परछाईं मुस्काती है
थक कर उन की बाँहों में तब अंगड़ाई मुस्काती है
सलीम रज़ा रीवा
ग़ज़ल
जाने कैसे होंगे आँसू बहते हैं तो बहने दो
भूली-बिसरी बात पुरानी कहते हैं तो कहने दो
सलीम रज़ा रीवा
ग़ज़ल
वाह-रे-वा ऐ नाला-ए-सोज़ाँ देख ली तेरी ठंडी गर्मी
दिल न पसीजा उस काफ़िर का आग भी तू ने भड़का देखी