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ग़ज़ल
हमारे आह-ओ-नाला से ज़माना है तह-ओ-बाला
कभी है शोर सहरा में कभी है ग़ुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शराब पी चुके बे-चारे को इजाज़त दो
खड़ा है देर से रुख़्सत को ऐ निगार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-मीरज़ाई ऐ 'नसीम'-देहलवी कब तक
झुको बुड्ढे हुए अब रुख़्सत-ए-लुत्फ़-ए-जवानी है
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
तासीर-ए-आह-ओ-नाला तो मा'लूम हाँ मगर
दिल का बुख़ार ख़ूब निकलता है आह में