aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ruu-ba-ruu"
आज फिर रू-ब-रू करोगे तुममुझ से क्या गुफ़्तुगू करोगे तुम
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करतेहम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते
एक आईना रू-ब-रू है अभीउस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू करतस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर
तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर केतुझ से मिलते हैं हम वुज़ू कर के
रू-ब-रू आना छुपाना छोड़ देलन-तरानी का सुनाना छोड़ दे
फूलों के रू-ब-रू था सितारों के सामनेवो शख़्स जल रहा था हज़ारों के सामने
आरज़ूएँ ना-रसाई रू-ब-रू मैं और तूक्या अजब क़ुर्बत थी वो भी मैं न तू मैं और तू
उस बेवफ़ा के रू-ब-रू फ़रियाद क्या करेंअब दिल के इस मकान को आबाद क्या करें
उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थेज़मीन आइना-ख़ाना थी चार-सू हम थे
रू-ब-रू उन के कोई हर्फ़ अदा क्या करतेदर्द तो हम को छुपाना था सदा क्या करते
रू-ब-रू हैं वो देखता क्या हैहाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लमगर्दिश-नसीब रोज़-ए-अज़ल से है तू क़लम
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइएताक़त कहाँ कि दीद का एहसाँ उठाइए
रू-ब-रू तेरे बहुत देर बिठाया गया मैंवज्द में आया नहीं वज्द में लाया गया मैं
हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहींशरीक-ए-इश्क़ कहीं कोई आरज़ू तो नहीं
रू-ब-रू फिर से उस की आँखें थींफिर से मुश्किल में ये मिरा दिल था
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू हैजो कुछ है ये कुछ नहीं है तू है
जल्वे हों रू-ब-रू तो तमाशा करे कोईजब कुछ नज़र न आए तो फिर क्या करे कोई
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