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ग़ज़ल
यहाँ घाव है यहाँ वार है ये सियासतों का दयार है
यहाँ कोई तेरा जना नहीं यहाँ कोई मेरा सगा नहीं
शकील आज़मी
ग़ज़ल
गुज़रती हैं जो फ़ील-ए-शब पे सज-धज कर तिरी यादें
हम उन पर अपने सग-हा-ए-तमन्ना छोड़ देते हैं
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
नुक्ता-चीं मेरे मिरे ख़ूँ की सफ़ेदी पे न जा
मैं नए दौर के भाई का सगा भाई हूँ
सईदुल्लाह ख़ाँ उफ़ुक़
ग़ज़ल
मुँह पर तो मुआफ़िक़ है पस-ए-पुश्त मुख़ालिफ़
दुश्मन जो मिरा है वो सगा है भी नहीं भी
आरज़ू अशरफ़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मैं तो बस मा'ना-ए-मिस्दाक़ उसी लफ़्ज़ का हूँ
मुसहफ़-ए-ज़ीस्त में जो सीग़ा-ए-तन्हाई है