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ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
इक होश की साअत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
क्या जाने कब किस साअत में तब्अ' रवाँ हो जाए
ये दरिया बे-मौसम भी तुग़्यानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
एक चराग़ और एक किताब और एक उमीद-ए-असासा
उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है