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ग़ज़ल
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
वो इक गुलदस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सताइश-घर के पंखों से हवा तो कम ही आती है
मगर चलते हैं जब ज़ालिम बहुत आवाज़ करते हैं
ख़ालिद महमूद
ग़ज़ल
तू सताइश-गर है उस का जो है तेरा मद्ह-ख़्वाँ
ये तो ऐ मुशफ़िक़ ज़मीर-ए-मर्हबा उल्टी फिरी
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
गुलज़ार बुख़ारी
ग़ज़ल
मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता
किया है पूरा इक मुश्किल सफ़र आहिस्ता आहिस्ता