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ग़ज़ल
हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज
दिल महव-ए-इंतिज़ार है और किस क़दर है आज
हमीद नागपुरी
ग़ज़ल
वो जिस पे तुम्हें शम-ए-सर-ए-रह का गुमाँ है
वो शो'ला-ए-आवारा हमारी ही ज़बाँ है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
बुझा बुझा सा चराग़-ए-सर-ए-मज़ार हूँ में
ख़िज़ाँ ने जिस को सँवारा है वो बहार हूँ मैं
रौशन बनारसी
ग़ज़ल
आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का
सेली-ए-ज़ुल्फ़-रसा ने कल्ला तोड़ा साँप का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
झिलमिलाती हुई बुझने लगी अब शम’-ए-हयात
ज़िंदगी भी है चराग़-ए-सर-ए-महफ़िल की तरह