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ग़ज़ल
पत्थर का दिल पानी पानी ज़िंदाँ की तारीख़ों पर
आज तलक रह रह कर चीख़ें उठती हैं दीवारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
ऐ बनी-आदम हाथों पे हाथों को धरे ख़ामोश न बैठ
आना है गर तुझ को तो तारीख़ों के सफ़्हात में आ